बुधवार, 15 जून 2016

.‘’देखिये पापा मैं आपसे कहे देती हूँ इस निर्जला एकादशी पर मैं आपको न तो मौन व्रत रखने दूँगी और न ही निराहार उपवास करने दूँगी ‘’पापा उसी शांत मुद्रा में ,’’ठीक है ‘’..... मैं बोली ,’’ठीक है नही रखेंगे, आप हर बार यही कहते हैं और फिर निर्जल मौन व्रत रख लेते है , पहले तो ठीक था लेकिन अब आपकी तबियत ठीक नही रहती है ,व्रत रखने से तबियत और बिगड़ सकती है ‘’......मैं जानती थी कोई फायदा नही है ,पापा करेंगे वही जो वो हमेशा से करते आए हैं, मैंने भी जीवन में कभी पापा से बहस नही की, अब भी नही कर सकी....फिर भी हिम्मत जुटा कर बोली , ‘’पापा पूरा जीवन संघर्षों में गुज़रा है , आखिर मिला ही क्या है आपको इतनी इतनी  तपस्या के बाद ‘’.....मुस्कुरा कर जवाब दिया ,‘’ क्या नही मिला? इन संघर्षों से गुजरने की ऊर्जा यहीं से तो मिलती है , और फिर कुछ मिले इसलिए ये सब नही किया जाता ये तो इस जीवन के बाद के लिए है ‘’ ....अब इसके बाद मैं क्या कहती ? ...उनके आध्यात्मिक सिद्धांतों से मैं भली भांति परिचित हूँ ...निर्जला एकादशी हो या नवरात्र ,मौन साधना और निराहार व्रत , गहन साधना में लीन हो जाना , किसी से नही मिलना , कमरे से बाहर भी नही निकलना मुझे बैचैन कर देता है ...लेकिन क्या करूं बचपन से उन्हें ऐसे ही देखती आई  हूँ ... जल संस्थान के वरिष्ठ इंजीनियर , एक अच्छे पुत्र , पिता और पति लेकिन अपने लिए बिलकुल हठ योगी ....चाय-कॉफ़ी जैसी किसी भी आदत से परे, हमेशा सात्विक भोजन खाया , गर्मियों के दिनों में जब हम कूलर चला कर सोते थे तब उनके कमरे में हल्का पंखा चलता था ....किसी भी चीज़ के आदि नही ....और विशेषकर नवरात्रों में कठिन साधना करना .... पूजा -उपासना तो मैं भी पूरे नियम से करती हूँ , उपवास आदि भी रखती हूँ लेकिन पापा की तरह निर्जल मौन व्रत, बिलकुल दुनिया से अलग रह कर जीना मेरे लिए संभव नही ....पर कभी कभी सोचती हूँ कि काश उनके जैसी सहनशीलता थोड़ी भी मुझमें आ पाता तो जीवन और सरल हो जाता  .....