tag:blogger.com,1999:blog-87644799027109627372024-02-08T02:55:25.704-08:00antardwandbhawnavardan@gmail.comhttp://www.blogger.com/profile/09610388468190261713noreply@blogger.comBlogger37125tag:blogger.com,1999:blog-8764479902710962737.post-85475014469199042942016-06-15T22:08:00.002-07:002016-06-15T22:08:47.404-07:00<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<div class="MsoNormal">
<span lang="HI" style="font-family: "mangal" , "serif"; font-size: 10.0pt; line-height: 115%;">.<o:p></o:p></span><span style="font-family: "mangal" , serif; font-size: 10pt; line-height: 115%;">‘’देखिये पापा मैं आपसे कहे देती हूँ इस निर्जला एकादशी पर मैं आपको न तो मौन व्रत रखने दूँगी और न ही निराहार उपवास करने दूँगी ‘’पापा उसी
शांत मुद्रा में ,’’ठीक है ‘’..... मैं बोली ,’’ठीक है नही रखेंगे, आप हर बार यही कहते
हैं और फिर निर्जल मौन व्रत रख लेते है , पहले तो ठीक था लेकिन अब आपकी
तबियत ठीक नही रहती है ,व्रत रखने से तबियत और बिगड़ सकती है ‘’......मैं जानती थी
कोई फायदा नही है ,पापा करेंगे वही जो वो हमेशा से करते आए हैं, मैंने भी जीवन में
कभी पापा से बहस नही की, अब भी नही कर सकी....फिर भी हिम्मत जुटा कर बोली , ‘’पापा
पूरा जीवन संघर्षों में गुज़रा है , आखिर मिला ही क्या है आपको इतनी इतनी </span><span style="font-family: "mangal" , serif; font-size: 10pt; line-height: 115%;"> </span><span style="font-family: "mangal" , serif; font-size: 10pt; line-height: 115%;">तपस्या के बाद ‘’.....मुस्कुरा कर जवाब दिया ,‘’
क्या नही मिला? इन संघर्षों से गुजरने की ऊर्जा यहीं से तो मिलती है , और फिर कुछ
मिले इसलिए ये सब नही किया जाता ये तो इस जीवन के बाद के लिए है ‘’ ....अब इसके
बाद मैं क्या कहती ? ...उनके आध्यात्मिक सिद्धांतों से मैं भली भांति परिचित हूँ
...निर्जला एकादशी हो या नवरात्र ,मौन साधना और निराहार व्रत , गहन साधना में लीन हो
जाना , किसी से नही मिलना , कमरे से बाहर भी नही निकलना मुझे बैचैन कर देता है
...लेकिन क्या करूं बचपन से उन्हें ऐसे ही देखती आई</span><span style="font-family: "mangal" , serif; font-size: 10pt; line-height: 115%;"> </span><span style="font-family: "mangal" , serif; font-size: 10pt; line-height: 115%;">हूँ ... जल संस्थान के वरिष्ठ इंजीनियर , एक
अच्छे पुत्र , पिता और पति लेकिन अपने लिए बिलकुल हठ योगी ....चाय-कॉफ़ी जैसी किसी
भी आदत से परे, हमेशा सात्विक भोजन खाया , गर्मियों के दिनों में जब हम कूलर चला
कर सोते थे तब उनके कमरे में हल्का पंखा चलता था ....किसी भी चीज़ के आदि नही
....और विशेषकर नवरात्रों में कठिन साधना करना .... पूजा -उपासना तो मैं भी पूरे नियम से
करती हूँ , उपवास आदि भी रखती हूँ लेकिन पापा की तरह निर्जल मौन व्रत, बिलकुल दुनिया से
अलग रह कर जीना मेरे लिए संभव नही ....पर कभी कभी सोचती हूँ कि काश उनके जैसी
सहनशीलता थोड़ी भी मुझमें आ पाता तो जीवन और सरल हो जाता</span><span style="font-family: "mangal" , serif; font-size: 10pt; line-height: 115%;"> </span><span style="font-family: "mangal" , serif; font-size: 10pt; line-height: 115%;">.....</span></div>
<div class="MsoNormal">
<span lang="HI" style="font-family: "mangal" , "serif"; font-size: 10.0pt; line-height: 115%;"><o:p></o:p></span></div>
</div>
bhawnavardan@gmail.comhttp://www.blogger.com/profile/09610388468190261713noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-8764479902710962737.post-49496555393653812272015-03-16T19:28:00.003-07:002015-03-16T19:31:56.338-07:00<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<br /></div>
bhawnavardan@gmail.comhttp://www.blogger.com/profile/09610388468190261713noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-8764479902710962737.post-67481693619096560422012-07-17T03:30:00.009-07:002012-07-17T03:30:59.317-07:00पड़ाव<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
जाने कहाँ से ,<br />
इन्सान इस दुनिया में<br />
आता है,<br />
अपनी असलियत से बेखबर,<br />
यहीं का होके रह जाता है,<br />
तिनका-तिनका जोड़ कर<br />
घर बनाता है,<br />
राह में पड़ने वाले,<br />
पडावो की ही अपनी मंजिल समझता है,<br />
और अपनी असली मंजिल<br />
को भूल जाता है,<br />
हँसता है, रोता है,<br />
जगता है, सोता है,<br />
और इसी तरह से दिन गुजारता है,<br />
और जब एक दिन,<br />
पड़ाव उठने का समय आता है,<br />
तो अपना सब कुछ यहीं छोड़ कर ,<br />
वो अपनी मंजिल की तरफ चला जाता है। </div>bhawnavardan@gmail.comhttp://www.blogger.com/profile/09610388468190261713noreply@blogger.com6tag:blogger.com,1999:blog-8764479902710962737.post-55645744705662863572012-07-17T03:28:00.000-07:002012-07-17T03:28:01.898-07:00<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<br />
ये जो आँखों से बहते हैं,<br />
आंसू कितना कुछ कहते हैं।<br />
<br />
<br />
आवाज नहीं करते कोई,<br />
चुप रह कर सब कुछ सहते हैं,<br />
कोई समझे इनकी भाषा ,<br />
तो जाने ये क्या कहते हैं।<br />
<br />
पलकों की चारदीवारी में,<br />
कभी कैद कभी रिहा होकर,<br />
आँखों के इन दो सीपों में,<br />
बूंदों के मोती रहते हैं।<br />
<br />
ये जो आँखों का पानी है,<br />
इसकी भी अजब कहानी है,<br />
ये तो शबनम का कतरा है,<br />
बस कतरा-कतरा बहते हैं।<br />
<br /></div>bhawnavardan@gmail.comhttp://www.blogger.com/profile/09610388468190261713noreply@blogger.com2tag:blogger.com,1999:blog-8764479902710962737.post-49147248237152073292012-07-17T03:27:00.004-07:002012-07-17T03:27:41.194-07:00<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<br />
खाली रातों में जागते रहना,<br />
चाँद तारों को ताकते रहना,<br />
सोचते और सोचते जाना ,<br />
रात की उम्र नापते रहना,<br />
नींद से जैसे दुश्मनी की हो,<br />
और ख्वाबों से भागते रहना,<br />
जागती रात के सफ़र तन्हा ,<br />
सिर्फ तन्हा ही काटते रहना।<br />
</div>bhawnavardan@gmail.comhttp://www.blogger.com/profile/09610388468190261713noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-8764479902710962737.post-38700342907454155352012-06-29T02:34:00.001-07:002012-06-29T02:34:02.779-07:00<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<br />
तन्हाई सज़ा नहीं,<br />
सामना है हकीकत से,<br />
दुनिया के सच को जान कर,<br />
खुद से मुखातिब होना ही ,<br />
तन्हाई है। <br />
जो जितना तनहा है,<br />
उतना ही रूबरु है,<br />
दुनिया की असलियत से,<br />
पास है खुद के। <br />
जो जितना भीड़ में है,<br />
उतना ही बेखबर है,<br />
सच से,<br />
दूर है अपने आप से। <br />
तनहा होना <br />
दुनिया की नज़र में,<br />
नाकामयाब सही,<br />
पर कामयाब है वो ,<br />
भीड़ से निकल कर ,<br />
खुद तक पहुँच पाने की कोशिश में,<br />
तन्हाई ही है ,<br />
जिन्दगी का सच,<br />
जो कल भी था ,<br />
और आगे भी रहेगा,<br />
चाहे कोई कितनी भी,<br />
कोशिश करे,<br />
भीड़ में खोकर,<br />
इस सच को भुलाने की।</div>bhawnavardan@gmail.comhttp://www.blogger.com/profile/09610388468190261713noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-8764479902710962737.post-33817779622181946412012-06-23T02:12:00.007-07:002012-06-24T07:34:33.846-07:00बिखरे मोती<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
बिखरे मोती मेरी डायरी में लिखी वो पंक्तियाँ हैं जो मैं खुद नहीं जानती कि कब लिख कर भूल गई।<br />
और आज उन सबको समेट कर एक जगह एकत्रित करने की कोशिश कर रही हूँ ....................<br />
<br />
<br />
<br />
में विवश हूँ,<br />
कह नहीं सकती जो कहना चाहती हूँ,<br />
डूबती हूँ भावनाओ के भंवर में,<br />
शब्दों की गहराईयों को नापती हूँ,<br />
मैं विवश हूँ।<br />
<br />
<br />
<br />
<br />
क्यों जीने को विवश हो गए ऐसा जीवन ,<br />
अन्दर से हूँ मृत,<br />
बाहर जीने का उपक्रम।<br />
<br />
<br />
<br />
हर सपने की नियति नहीं होती सच बनना,<br />
हर आँसू होता है किसी का टूटा सपना<br />
<br />
<br />
<br />
जोह रही थी बाट ,<br />
कब से सुख की मैं,<br />
दुःख ये कैसा अनकहे ही आ गया,<br />
न रहा सुख-दुःख में फिर अंतर कोई,<br />
मुझको उस ऊँचाई पर पहुंचा गया।<br />
<br />
<br />
<br />
<br />
<br /></div>bhawnavardan@gmail.comhttp://www.blogger.com/profile/09610388468190261713noreply@blogger.com4tag:blogger.com,1999:blog-8764479902710962737.post-44213524604757213302012-06-23T02:10:00.008-07:002012-06-23T02:10:41.580-07:00<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
एक लम्बा सफ़र तय कर लिया है मैंने,<br />
पर मन के अन्दर झांकती हूँ,<br />
तो खुद को वहीँ खड़ा पाती हूँ,<br />
जहाँ से चलना शुरू किया था,<br />
वक़्त बदलता है,<br />
हालात बदलते हैं,<br />
पर क्यों मैं नहीं बदल पाती खुद को ?<br />
नहीं बिठा पाती हूँ सामंजस्य ,<br />
लोगों से, परिस्थितियों से,<br />
चाह कर भी,<br />
शायद मैं बदलना चाहती भी नहीं हूँ,<br />
खुद को,<br />
प्यार करती हूँ मैं अपने इसी रूप से ,<br />
जो रहता है अपरिवर्तित ,<br />
हर परिस्थिति में </div>bhawnavardan@gmail.comhttp://www.blogger.com/profile/09610388468190261713noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-8764479902710962737.post-61456994938364239922012-06-21T11:36:00.002-07:002012-06-21T11:36:14.188-07:00मरुस्थल<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<br />
ये जीवन एक मरुस्थल है, <br />
जलती भूमि तपती रेत ,<br />
चलती हूँ झुलसे पाँवों से ,<br />
कब हो जाऊं कहाँ अचेत।<br />
<br />
पग-पग पर काँटे ही काँटे,<br />
यातनाओ से त्रस्त शरीर,<br />
थका हुआ तन,<br />
थका हुआ मन ,<br />
उड़ जाने को प्राण अधीर।<br />
<br />
भटकाती है म्रगमरीचिका,<br />
पल-पल और बढाती प्यास,<br />
कभी-कभी तो यूँ लगता है,<br />
अब छूटी तब छूटी साँस।<br />
</div>bhawnavardan@gmail.comhttp://www.blogger.com/profile/09610388468190261713noreply@blogger.com4tag:blogger.com,1999:blog-8764479902710962737.post-14512885318752791272012-06-21T11:27:00.003-07:002012-06-21T11:27:16.523-07:00कली<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
वो कली ,<br />
है अधकली ,<br />
मुस्काई सी,<br />
सोचती हूँ तोड़ लूँ<br />
उसको अभी मैं,<br />
और सुखा कर रख लूँ<br />
एक किताब मैं,<br />
इससे पहले कि<br />
बिखर जाये वो<br />
हवा के बहाव में,<br />
व्यर्थ है,<br />
किन्तु ये सब,<br />
बिखरना है उसे हर हल में,<br />
सूखने से पहले ,<br />
या फिर सूखने के बाद में।<br />
</div>bhawnavardan@gmail.comhttp://www.blogger.com/profile/09610388468190261713noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-8764479902710962737.post-87619729033577687372012-06-21T11:22:00.002-07:002012-06-21T11:22:08.176-07:00तृष्णा<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
मेरे मन की भूमि पर ,<br />
न जाने कहाँ से,<br />
असंतोष का एक बीज,<br />
अंकुरित हो गया है,<br />
जो दिन पर दिन ,<br />
बढता हुआ पहले पौधा ,<br />
और अब एक पेड़ बन चुका है,<br />
इसकी कामनाओं,<br />
और इच्छाओं रुपी शाखाओं को,<br />
जितना काटो उतना ही बड़ती जाती हैं,<br />
और अधूरी आकांछाओं रुपी पत्तियां,<br />
नित्य झड़ती हैं,<br />
और उतनी ही तेजी से,<br />
पल्लवित होती रहती हैं,<br />
सूख चुकी है मन की भूमि,<br />
रुक गए हैं उन्नति रुपी,<br />
धूप और पानी के सभी स्रोत ,<br />
फिर भी निरंतर बढता जा रहा है,<br />
ऐसा लगता है की मानो,<br />
इन इच्छाओं और कामनाओं का जंगल ,<br />
इतना बढ जायेगा ,<br />
कि भटक कर रह जाऊंगी ,<br />
उसमें मैं।<br />
</div>bhawnavardan@gmail.comhttp://www.blogger.com/profile/09610388468190261713noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-8764479902710962737.post-72037045254007911042012-06-19T23:25:00.000-07:002012-06-19T23:25:43.943-07:00<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<br /></div>bhawnavardan@gmail.comhttp://www.blogger.com/profile/09610388468190261713noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-8764479902710962737.post-73979781421648470402012-06-19T23:23:00.003-07:002012-06-19T23:27:46.775-07:00आश्रय<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
आश्रित नहीं,<br />
आश्रय बनो,<br />
<br />
तुम एक नन्ही ज्योति हो,<br />
लाखो दिए जो जलाएगी,<br />
जो रौशनी का स्रोत हो,<br />
तुम ऐसा दीपालय बनो,<br />
आश्रित नहीं,<br />
आश्रय बनो।<br />
<br /></div>bhawnavardan@gmail.comhttp://www.blogger.com/profile/09610388468190261713noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-8764479902710962737.post-1887259363419632542012-06-19T23:20:00.003-07:002012-06-19T23:27:29.848-07:00पथ-प्रदर्शक<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<br />
जीवन की उलझी राहों में,<br />
कुछ कांटे भी है,<br />
फूल भी है,<br />
तुम कांटे पा कर मत रोना ,<br />
और फूल मिलें तो मत खोना ,<br />
ये ही वो पथ-प्रदर्शक हैं,<br />
जो तुमको राह दिखातें हैं,<br />
और मंजिल तक पहुंचाते हैं।<br />
<br />
<br />
<br /></div>bhawnavardan@gmail.comhttp://www.blogger.com/profile/09610388468190261713noreply@blogger.com2tag:blogger.com,1999:blog-8764479902710962737.post-39906994686474448332012-06-19T03:23:00.003-07:002012-06-19T03:23:36.804-07:00आत्मदर्शन<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
बस दो चार किताबें,<br />
पढ कर ,<br />
थोडा सा ज्ञान इकठ्ठा कर के,<br />
मैं बन जाना चाहती हूँ ,<br />
ज्ञानी, विचार, दार्शनिक ,<br />
बिना साधना किये ही,<br />
पा लेना चाहती हूँ,<br />
लक्ष्य को,<br />
बिना अपने अंतर्मन में झांके ही,<br />
पा लेना चाहती हूँ आत्मज्ञान ,<br />
भूल जाती हूँ ,<br />
स्वयं को जानने के लिए,<br />
मुझे झाकना पड़ेगा ,<br />
अपने ही अन्दर,<br />
बहुत गहराइयों में,<br />
जहाँ से निकलेंगी ,<br />
ज्ञान की तरंगे,<br />
जो कराएंगी,<br />
मेरा साक्षातकार ,<br />
सत्य से,<br />
किन्तु उस गहराई तक जाने के लिए,<br />
मुझे उतार देना हो,<br />
व्यर्थ किताबी ज्ञान का बोझ,<br />
और बन जाना होगा,<br />
एक जिज्ञासू ,<br />
निश्छल, निष्पाप,<br />
सत्य जानने को उत्सुक ,<br />
बिलकुल उसी प्रारंभिक अवस्था में,<br />
जहाँ मैं थी,<br />
एक अबोध बच्चे की तरह।<br />
</div>bhawnavardan@gmail.comhttp://www.blogger.com/profile/09610388468190261713noreply@blogger.com15tag:blogger.com,1999:blog-8764479902710962737.post-28981630967031043392012-06-19T02:56:00.002-07:002012-06-19T02:56:22.710-07:00खिलौना<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<br />
<br />
भाग्य और परिस्थितियों के हाथों ,<br />
खिलोने की भांति नाच-नाच कर,<br />
इन्सान कभी थक सा जाता है,<br />
मन ग्लानी और क्षोभ से भर जाता है,<br />
जीवन अर्थ-हीन सा लगता है,<br />
अपना अस्तित्व,<br />
मिट्टी के खिलोने सा नज़र आता है,<br />
तब उसके अन्दर कुछ टूट सा जाता है,<br />
लेकिन बार-बार टूट कर भी ,<br />
जब वह जुड़ जाता है ,<br />
परिस्थितियों का सामना करने की ,<br />
स्वयं से ही प्रेरणा पाता है,<br />
अपने अन्दर एक प्रकाश सा नज़र आता है,<br />
जब जीवन एक संघर्ष बन जाता है,<br />
जीवनपर्यंत लड़ते -लड़ते,<br />
भाग्य और परिस्थितियों से ,<br />
हार कर भी जीत जाता है।<br />
,<br />
<br />
</div>bhawnavardan@gmail.comhttp://www.blogger.com/profile/09610388468190261713noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-8764479902710962737.post-34326299307797700082012-06-18T06:15:00.001-07:002012-06-18T06:16:06.770-07:00<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<br />
अभी सुबह ही कॉलेज जाते हुए,<br />
बस की खिड़की से मैंने वह अदभुत द्रश्य देखा था,<br />
लालकिले की दीवार के पीछे से उगता हुआ,<br />
नन्हा सा लाल सूरज,<br />
और उसके चारो ओर फैले हुए,<br />
आवारा नन्हे बादलों के टुकड़े ,<br />
जो सुबह की हलकी रौशनी में,<br />
ऐसे लग रहे थे,<br />
मानो किसी नदी के किनारे की गीली मिटटी ,<br />
जी चाहा कि भीड़ और धुयें से उठकर,<br />
अपने पांव रखूँ उन पर,<br />
और महसूस करू उनका गीलापन,<br />
जो सूरज के इतने पास होते हुए भी,<br />
कितना शीतल दिखाई दे रहा था,<br />
लेकिन जल्द ही वह द्रश्य ,<br />
मेरी आँखों के आगे से ओझल हो गया,<br />
सूरज गर्म और गर्म होता गया ,<br />
और में बस से उतर कर,<br />
फिर खो गयी,<br />
उन्ही धुंएँ और धुल भरी सड़कों पर।<br />
<br />
<br /></div>bhawnavardan@gmail.comhttp://www.blogger.com/profile/09610388468190261713noreply@blogger.com4tag:blogger.com,1999:blog-8764479902710962737.post-12818347516477412952012-06-17T22:44:00.002-07:002012-06-17T22:44:19.111-07:00<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<br />
माँ,<br />
मैं आज रात फिर नही सोयी,<br />
तुम्हारी चिंता में,<br />
क्योंकि मैं जानती हूँ कि ,<br />
तुम भी नहीं सोयी होगी वहां,<br />
और सोती भी कैसे?,<br />
फिर सताया होगा तुम्हे रात भर,<br />
तुम्हारी उस पुरानी बीमारी ने ,<br />
दर्द से कराहती रही होगी रात भर तुम ,<br />
बंधी हुयी हूँ मैं परिस्थितियों में यहाँ,<br />
चाह कर भी आ नहीं सकती तुम्हारे पास वहाँ ,<br />
घबराती हूँ,<br />
तड़पती हूँ,<br />
रह रह कर,<br />
चीख चीख कर कहता है मेरा मन,<br />
जा पुकार रही होगी तुझे तेरी माँ ,<br />
वही माँ जो तेरे जरा से दर्द से घबरा जाती थी,<br />
तुझे कंधे से लगाये पूरी रात बिताती थी,<br />
सहलाती थी तेरी एक नन्ही सी चोट को भी,<br />
तेरे एक आँसू से भी परेशां हो जाती थी,<br />
और आज वो परेशां है,<br />
कह नहीं सकती किसी से अपनी व्यथा ,<br />
तकती रहती हैं उसकी आँखें तेरा रस्ता,<br />
छोड़ दे ये वयस्तता ,<br />
कुछ पल बिता माँ के साथ जा।<br />
<br />
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<br /></div>bhawnavardan@gmail.comhttp://www.blogger.com/profile/09610388468190261713noreply@blogger.com4tag:blogger.com,1999:blog-8764479902710962737.post-60339700269452943612012-06-16T02:20:00.002-07:002012-06-16T02:20:58.521-07:00<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<br />
देखा है मैंने ,<br />
जाने कितने रिश्तों को ,<br />
बनते हुए और बिगड़ते हुए,<br />
एक-एक कदम बड़ा कर ,<br />
लोगो को करीब आते हुए,<br />
और फिर छोटी -छोटी बातों पर,<br />
रिश्तो में दरारे आते हुए,<br />
महसूस किया है मैने,<br />
देखकर एक ही इंसान में,<br />
देवता भी और दानव भी,<br />
कि क्या है जो बदलता रहता है,<br />
एक इंसान के अन्दर,<br />
उसका मन , उसकी भावनायें ,<br />
उसकी मनोवृति या उसकी परिस्थिति।<br />
</div>bhawnavardan@gmail.comhttp://www.blogger.com/profile/09610388468190261713noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-8764479902710962737.post-54852069196975936252012-06-16T02:14:00.003-07:002012-06-16T02:14:27.882-07:00<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<br />
<br />
एक द्वन्द सा चल रहा है,<br />
मेरे और प्रारब्ध के बीच में,<br />
हर बार मैं सपने देखती हूँ,<br />
और हर बार<br />
वो मेरे सपनो को चूर चूर कर देता है,<br />
जैसे कह रहा हो मुझसे कि ,<br />
किस अधिकार से तुम सपने देखती हो,<br />
जब कुछ भी नहीं है तुम्हारे हाथ में,<br />
पर मैं जैसे आदी हो चुकी हूँ,<br />
सपने देखने की,<br />
जिस प्रकार बचपन में ,<br />
बारिश के मौसम में,<br />
कागज की नाव बनाकर तैराती थी मैं ,<br />
आँगन के बहते पानी में,<br />
और वो नाव कभी डूबती थी ,<br />
तो कभी पार लग जाती थी ,<br />
लेकिन मैं अंजाम की चिंता किये बिना<br />
आज तक बारिश के मौसम में,<br />
कागज की नाव तैराती आ रही हूँ,<br />
और सपने देखती आ रही हूँ।<br />
<br /></div>bhawnavardan@gmail.comhttp://www.blogger.com/profile/09610388468190261713noreply@blogger.com2tag:blogger.com,1999:blog-8764479902710962737.post-65203308967940777022012-06-16T00:06:00.002-07:002012-06-16T00:06:59.098-07:00<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<br />
अब टूटने लगा है मेरा नाता,<br />
इस बाहरी संसार से,<br />
बना ली है मेने अपने अन्दर,<br />
अपनी ही एक दुनिया,<br />
जिसमें रहती हूँ मैं ,<br />
बस मैं ,<br />
वर्जित है उसमें,<br />
किसी अन्य का प्रवेश,<br />
और जीना सीखने लगी हूँ,<br />
अपनी उसी दुनिया में,<br />
जानते हुए कि बहुत कठिन है,<br />
दुनिया से कट कर जीना,<br />
क्योंकि ये ऐसा ही है,<br />
जैसे भीड़ के साथ,<br />
न चल पाने की विवशता के बाद,<br />
अपनी एक अलग राह बनाना ,<br />
पर क्या पता कभी ये राह ही,<br />
मुझे मेरी मंजिल तक पहुँचा दे।<br />
<br /></div>bhawnavardan@gmail.comhttp://www.blogger.com/profile/09610388468190261713noreply@blogger.com9tag:blogger.com,1999:blog-8764479902710962737.post-72302456879157435942012-06-14T22:43:00.004-07:002012-06-15T01:05:33.646-07:00<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<br />
मन में उमड़ती भावनाएं,<br />
टकराती हैं ह्रदय की दीवारों से,<br />
शब्दों के शरीर धारण कर के,<br />
आना चाहती हैं बाहर इस संसार में,<br />
अंकित हो जाने को कविता बन कर ,<br />
किसी पन्ने पर,<br />
लेकिन बाहर आते ही,<br />
भागती हैं इधर- उधर,<br />
बचने को कलम की स्याही से,<br />
बहुत कठिन हो जाता है तब ,<br />
इन्हें इकठ्ठा करना ,<br />
असमर्थ हो जाते हैं शब्द ,<br />
उन्हें बांध पाने में,<br />
और रह जाती है मेरी हर कविता<br />
कुछ अधूरी सी। </div>bhawnavardan@gmail.comhttp://www.blogger.com/profile/09610388468190261713noreply@blogger.com4tag:blogger.com,1999:blog-8764479902710962737.post-53510946485418985832012-06-14T22:35:00.005-07:002012-06-14T22:35:48.620-07:00<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<br />
चिड़िया का घौंसला,<br />
एक एक तिनका जोड़ कर बनाया हुआ,<br />
बस उसका और उसके बच्चो का,<br />
छोटा सा अशीयाना ,<br />
न कमरे, न दरवाजे , न कोई सामान,<br />
फिर भी कितना सुन्दर,<br />
मूक पछियों के प्रेम का<br />
एक जीवंत उदाहरण,<br />
फिर हम क्यों इकठ्ठा करते हैं इतना सामान,<br />
अधिक से अधिक पाने की दोड़ में,<br />
होते जाते हैं ,<br />
एक दूसरे से दूर,<br />
क्या हम नहीं रह सकते ,<br />
इन्हीं की तरह ,<br />
प्यार के ताने बानो से बुने हुए,<br />
एक नन्हे से घरोंदे में?<br />
<br /></div>bhawnavardan@gmail.comhttp://www.blogger.com/profile/09610388468190261713noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-8764479902710962737.post-76360110568503315362012-06-12T23:43:00.001-07:002012-06-12T23:43:10.059-07:00<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<br />
इस रात की काली चादर में,<br />
मैं जाने क्या ढूंढा करती हूँ,<br />
कोई सुराग नज़र आये ,<br />
उम्मीद सुबह की जो लाये,<br />
इन थकी हुयी सी आँखों में,<br />
कोई मीठा सपना लाये,<br />
फिर शायद नींद मुझे आये।<br />
<br />
कितनी ही रातें गुज़र गयी,<br />
मैं यूँ ही जागा करती हूँ,<br />
जो सपने मुझे डरते हैं,<br />
में उनसे भागा करती हूँ,<br />
सपनो की आँख मिचोली से<br />
थक कर फिर आँखे सो जायें , <br />
फिर शायद नींद मुझे आये।<br />
<br />
<br />
<br />
<br />
<br />
<br /></div>bhawnavardan@gmail.comhttp://www.blogger.com/profile/09610388468190261713noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-8764479902710962737.post-45618708477163412392012-06-12T23:24:00.001-07:002012-06-12T23:24:09.789-07:00<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
ये सपने मेरे दुश्मन हैं,<br />
<br />
आँखों में जितने आंसू हैं<br />
ये सपनी की ही देन हैं सब ,<br />
अवचेतन मन का भ्रम है ये<br />
ये रोके से रुकते हैं कब,<br />
ये एक अनचाहा बंधन हैं,<br />
ये सपने मेरे दुश्मन हैं।<br />
<br />
खुलती है इनकी सच्चाई<br />
कुछ हाथ नहीं आता है जब,<br />
ये राहों से भटकतें हैं<br />
ये मंजिल तक पहुंचाते कब,<br />
ये केवल मन का मंथन हैं,<br />
ये सपने मेरे दुश्मन हैं।<br />
<br />
जब भी कोई सपना टूटा है<br />
मैं रोई हूँ मन टूटा है ,<br />
लेकिन आँखों से सपनो का<br />
न साथ अभी भी छूटा है,<br />
सपने ही दुःख का कारण हैं ,<br />
ये सपने मेरे दुश्मन हैं।<br />
<br />
हर बार मैं कसमे खाती हूँ ,<br />
अपने मन को समझाती हूँ,<br />
सपनो की भूलभुलैया में<br />
लेकिन फिर भी खो जाती हूँ,<br />
ये तो तृष्णाऑ का वन है,<br />
ये सपने मेरे दुश्मन हैं। </div>bhawnavardan@gmail.comhttp://www.blogger.com/profile/09610388468190261713noreply@blogger.com0