बिखरे मोती मेरी डायरी में लिखी वो पंक्तियाँ हैं जो मैं खुद नहीं जानती कि कब लिख कर भूल गई।
और आज उन सबको समेट कर एक जगह एकत्रित करने की कोशिश कर रही हूँ ....................
में विवश हूँ,
कह नहीं सकती जो कहना चाहती हूँ,
डूबती हूँ भावनाओ के भंवर में,
शब्दों की गहराईयों को नापती हूँ,
मैं विवश हूँ।
क्यों जीने को विवश हो गए ऐसा जीवन ,
अन्दर से हूँ मृत,
बाहर जीने का उपक्रम।
हर सपने की नियति नहीं होती सच बनना,
हर आँसू होता है किसी का टूटा सपना
जोह रही थी बाट ,
कब से सुख की मैं,
दुःख ये कैसा अनकहे ही आ गया,
न रहा सुख-दुःख में फिर अंतर कोई,
मुझको उस ऊँचाई पर पहुंचा गया।
और आज उन सबको समेट कर एक जगह एकत्रित करने की कोशिश कर रही हूँ ....................
में विवश हूँ,
कह नहीं सकती जो कहना चाहती हूँ,
डूबती हूँ भावनाओ के भंवर में,
शब्दों की गहराईयों को नापती हूँ,
मैं विवश हूँ।
क्यों जीने को विवश हो गए ऐसा जीवन ,
अन्दर से हूँ मृत,
बाहर जीने का उपक्रम।
हर सपने की नियति नहीं होती सच बनना,
हर आँसू होता है किसी का टूटा सपना
जोह रही थी बाट ,
कब से सुख की मैं,
दुःख ये कैसा अनकहे ही आ गया,
न रहा सुख-दुःख में फिर अंतर कोई,
मुझको उस ऊँचाई पर पहुंचा गया।
सुन्दर भावाव्यक्ति।
जवाब देंहटाएंबेहतरीन
जवाब देंहटाएंसादर
न रहा सुख-दुःख में फिर अंतर कोई,
जवाब देंहटाएंमुझको उस ऊँचाई पर पहुंचा गया।
Bahut sunder!
दर्द ही दर्द ...दुख ही दुख ....
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