जाने कहाँ से ,
इन्सान इस दुनिया में
आता है,
अपनी असलियत से बेखबर,
यहीं का होके रह जाता है,
तिनका-तिनका जोड़ कर
घर बनाता है,
राह में पड़ने वाले,
पडावो की ही अपनी मंजिल समझता है,
और अपनी असली मंजिल
को भूल जाता है,
हँसता है, रोता है,
जगता है, सोता है,
और इसी तरह से दिन गुजारता है,
और जब एक दिन,
पड़ाव उठने का समय आता है,
तो अपना सब कुछ यहीं छोड़ कर ,
वो अपनी मंजिल की तरफ चला जाता है।
इन्सान इस दुनिया में
आता है,
अपनी असलियत से बेखबर,
यहीं का होके रह जाता है,
तिनका-तिनका जोड़ कर
घर बनाता है,
राह में पड़ने वाले,
पडावो की ही अपनी मंजिल समझता है,
और अपनी असली मंजिल
को भूल जाता है,
हँसता है, रोता है,
जगता है, सोता है,
और इसी तरह से दिन गुजारता है,
और जब एक दिन,
पड़ाव उठने का समय आता है,
तो अपना सब कुछ यहीं छोड़ कर ,
वो अपनी मंजिल की तरफ चला जाता है।