जाने कहाँ से ,
इन्सान इस दुनिया में
आता है,
अपनी असलियत से बेखबर,
यहीं का होके रह जाता है,
तिनका-तिनका जोड़ कर
घर बनाता है,
राह में पड़ने वाले,
पडावो की ही अपनी मंजिल समझता है,
और अपनी असली मंजिल
को भूल जाता है,
हँसता है, रोता है,
जगता है, सोता है,
और इसी तरह से दिन गुजारता है,
और जब एक दिन,
पड़ाव उठने का समय आता है,
तो अपना सब कुछ यहीं छोड़ कर ,
वो अपनी मंजिल की तरफ चला जाता है।
इन्सान इस दुनिया में
आता है,
अपनी असलियत से बेखबर,
यहीं का होके रह जाता है,
तिनका-तिनका जोड़ कर
घर बनाता है,
राह में पड़ने वाले,
पडावो की ही अपनी मंजिल समझता है,
और अपनी असली मंजिल
को भूल जाता है,
हँसता है, रोता है,
जगता है, सोता है,
और इसी तरह से दिन गुजारता है,
और जब एक दिन,
पड़ाव उठने का समय आता है,
तो अपना सब कुछ यहीं छोड़ कर ,
वो अपनी मंजिल की तरफ चला जाता है।
बहुत सुन्दर और गहन अभिव्यक्ति है आपकी.
जवाब देंहटाएंआभार.
सादर धन्यवाद्
हटाएंBadi saralta se aap ne jivan ki vyatha-katha ko vyakt kiya hai, sundar aur gambhir prastutiऔर अपनी असली मंजिल
जवाब देंहटाएंको भूल जाता है,
हँसता है, रोता है,
जगता है, सोता है,
और इसी तरह से दिन गुजारता है,
और जब एक दिन,
पड़ाव उठने का समय आता है,
तो अपना सब कुछ यहीं छोड़ कर ,
वो अपनी मंजिल की तरफ चला जाता है।
apka dhanyavad
हटाएंराह में पड़ने वाले,
जवाब देंहटाएंपडावो की ही अपनी मंजिल समझता है,
और अपनी असली मंजिल
को भूल जाता है,
एकदम सही है ...जीवन में यही है मनुष्य की कमजोरी ....!
jee haan kewal ji, mere blog par ane ke liye abhar
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