दिल में बैचैनी नहीं ,
माथे पर शिकन तक नहीं ,
फिर क्यों अजनबी की तरह ये दो आँसू ,
आँख से बह निकले हैं,
शायद दिल में दबे हुए
उस दर्द ने फिर आँख खोली है
जिसे भूल जाती हूँ अक्सर
में इस दुनिया के शोर में
लेकिन मेरे अन्दर कोई है
जो दिन रत रोता है
कभी नहीं भूलता है,
उस दुःख को और
उसी दुःख की आग में पिघल कर वो बहता रहता है
मेरी आँखों के रस्ते से,
और बहता रहेगा ताउम्र ,
मेरे न चाहने पर भी इसी तरह बेआवाज हो कर
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