वो कली ,
है अधकली ,
मुस्काई सी,
सोचती हूँ तोड़ लूँ
उसको अभी मैं,
और सुखा कर रख लूँ
एक किताब मैं,
इससे पहले कि
बिखर जाये वो
हवा के बहाव में,
व्यर्थ है,
किन्तु ये सब,
बिखरना है उसे हर हल में,
सूखने से पहले ,
या फिर सूखने के बाद में।
है अधकली ,
मुस्काई सी,
सोचती हूँ तोड़ लूँ
उसको अभी मैं,
और सुखा कर रख लूँ
एक किताब मैं,
इससे पहले कि
बिखर जाये वो
हवा के बहाव में,
व्यर्थ है,
किन्तु ये सब,
बिखरना है उसे हर हल में,
सूखने से पहले ,
या फिर सूखने के बाद में।
बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति!
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