आंसुओ का झरना
में झाकना चाहती हूँ अपने अन्दर
देखना चाहती हूँ कहाँ से आता है
आंसुओ का ये झरना बह कर ,
जो अटक जाता है मेरी पलकों पर
और कभी कर देता है मेरे आँचल को तर ,
ढूंढ कर उस जगह को बोना चाहती हूँ
एक ख़ुशी
का बीज वहां पर,
की फिर निकले तो बस हंसी ही निकले
मेरे इन होठो पर
srijnatamak prastuti.
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