मंगलवार, 12 जून 2012

ये सपने मेरे दुश्मन हैं,

आँखों में जितने आंसू हैं
 ये सपनी की ही देन  हैं सब ,
अवचेतन मन का भ्रम है ये
ये रोके से रुकते हैं कब,
ये एक अनचाहा बंधन हैं,
ये सपने मेरे दुश्मन हैं।

खुलती है इनकी सच्चाई
कुछ हाथ नहीं आता  है जब,
ये राहों  से भटकतें हैं
ये मंजिल तक पहुंचाते कब,
ये केवल मन का मंथन हैं,
ये सपने मेरे दुश्मन हैं।

जब भी कोई सपना टूटा है
मैं रोई हूँ मन टूटा है ,
लेकिन आँखों से सपनो का
न साथ अभी भी छूटा  है,
सपने ही दुःख का कारण  हैं ,
ये सपने मेरे दुश्मन हैं।

हर बार मैं  कसमे खाती  हूँ ,
अपने मन को समझाती हूँ,
सपनो की भूलभुलैया में
 लेकिन फिर भी खो जाती हूँ,
ये तो तृष्णाऑ  का वन है,
ये सपने मेरे दुश्मन हैं।

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