मंगलवार, 12 जून 2012

हर इन्सान छुपाये है
अपने  अन्दर
एक अंतहीन खालीपन,
 एक दर्द का गुबार ,
एक कभी न ख़त्म होने वाला विचारों का काफिला ,
साडी उम्र अन्दर ही अन्दर
वो ज़ूझता रहता है ,
अपने अन्दर के उस तूफ़ान से ,
सुख हो या दुख
लेकिन वो पीडा वैसी  ही रहती है,
दूसरा कोई कितना भी झांके उसके अन्दर
और ढूंढे पर नहीं पा सकता
उसका छो र
वो खुद भी चाहे तो व्यक्त नहीं कर सकता ,
नही समझा सकता औरो को ,
और वो खुद भी नहीं समझ पाता
  सारी  उम्र ,
की क्या चाहिए उसे?
हल नहीं कर पता
अपने अन्दर की उस अबूझ  पहेली को, उस अंतर्द्वंद को जो शांत होता है,
बस दिल की धड़कनो  के साथ ही।



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