गुरुवार, 14 जून 2012


मन में उमड़ती भावनाएं,
टकराती हैं ह्रदय की दीवारों से,
शब्दों के शरीर धारण कर के,
आना चाहती हैं बाहर इस संसार में,
अंकित हो जाने को कविता बन कर ,
किसी पन्ने पर,
लेकिन बाहर आते ही,
भागती हैं इधर- उधर,
बचने को कलम की स्याही से,
बहुत कठिन हो जाता है तब ,
 इन्हें इकठ्ठा करना ,
असमर्थ हो जाते हैं शब्द ,
उन्हें बांध पाने में,
और रह जाती है मेरी हर कविता
 कुछ अधूरी सी।

4 टिप्‍पणियां:

  1. भावनाजी अक्सर होता है यह ....भावनाओं और शब्दों के बीच का द्वन्द हमेशा ही एक प्रसव की सी पीड़ा देता है ....एक रचना के सर्जन की....

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  2. पर जब संघर्ष कर निकलेंगी भावनाएं शब्दों के रूप में तो ..गज़ब करेंगीं .
    बहुत भावपूर्ण प्रस्तुति.

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