हथेली पे चेहरे को टिकाये ,
शून्य में एकटक निहारते हुये
विचारों में खोये रहना ,
अब तो ये आदत सी हो गयी है,
हजार तरह की
बेड़ियों से जकड़े रहने के बाद,
यही एक आरामदायक स्थिति है,
जिसमे मुझे स्वच्छंद्ता का अनुभव होता है,
अच्छा है सोच पर कोई अंकुश नहीं होता ,
सब कुछ जान कर भी
अजनबीपन के मुखोटो को ओडे हुए ,
लोगो से उकता कर,
जब में अपने विचारो की दुनिया में आती हूँ ,
अपनी वास्तविक स्थिति में
तब में अपने बहुत करीब आ जाती हूँ,
कभी कभी तो अपने विचारो की दुनिया से
बहार आने की इच्छा ही नहीं होती,
लेकिन फिर भी अपने विचारों की
स्वच्छंद उड़ानों को रोक कर मुझे आना ही पड़ता है,
मुझे वास्तविकता के कठोर धरातल पर,
क्योंकि आखिर जीना तो हमें इसी दुनिया में है
शून्य में एकटक निहारते हुये
विचारों में खोये रहना ,
अब तो ये आदत सी हो गयी है,
हजार तरह की
बेड़ियों से जकड़े रहने के बाद,
यही एक आरामदायक स्थिति है,
जिसमे मुझे स्वच्छंद्ता का अनुभव होता है,
अच्छा है सोच पर कोई अंकुश नहीं होता ,
सब कुछ जान कर भी
अजनबीपन के मुखोटो को ओडे हुए ,
लोगो से उकता कर,
जब में अपने विचारो की दुनिया में आती हूँ ,
अपनी वास्तविक स्थिति में
तब में अपने बहुत करीब आ जाती हूँ,
कभी कभी तो अपने विचारो की दुनिया से
बहार आने की इच्छा ही नहीं होती,
लेकिन फिर भी अपने विचारों की
स्वच्छंद उड़ानों को रोक कर मुझे आना ही पड़ता है,
मुझे वास्तविकता के कठोर धरातल पर,
क्योंकि आखिर जीना तो हमें इसी दुनिया में है
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