बस दो चार किताबें,
पढ कर ,
थोडा सा ज्ञान इकठ्ठा कर के,
मैं बन जाना चाहती हूँ ,
ज्ञानी, विचार, दार्शनिक ,
बिना साधना किये ही,
पा लेना चाहती हूँ,
लक्ष्य को,
बिना अपने अंतर्मन में झांके ही,
पा लेना चाहती हूँ आत्मज्ञान ,
भूल जाती हूँ ,
स्वयं को जानने के लिए,
मुझे झाकना पड़ेगा ,
अपने ही अन्दर,
बहुत गहराइयों में,
जहाँ से निकलेंगी ,
ज्ञान की तरंगे,
जो कराएंगी,
मेरा साक्षातकार ,
सत्य से,
किन्तु उस गहराई तक जाने के लिए,
मुझे उतार देना हो,
व्यर्थ किताबी ज्ञान का बोझ,
और बन जाना होगा,
एक जिज्ञासू ,
निश्छल, निष्पाप,
सत्य जानने को उत्सुक ,
बिलकुल उसी प्रारंभिक अवस्था में,
जहाँ मैं थी,
एक अबोध बच्चे की तरह।
पढ कर ,
थोडा सा ज्ञान इकठ्ठा कर के,
मैं बन जाना चाहती हूँ ,
ज्ञानी, विचार, दार्शनिक ,
बिना साधना किये ही,
पा लेना चाहती हूँ,
लक्ष्य को,
बिना अपने अंतर्मन में झांके ही,
पा लेना चाहती हूँ आत्मज्ञान ,
भूल जाती हूँ ,
स्वयं को जानने के लिए,
मुझे झाकना पड़ेगा ,
अपने ही अन्दर,
बहुत गहराइयों में,
जहाँ से निकलेंगी ,
ज्ञान की तरंगे,
जो कराएंगी,
मेरा साक्षातकार ,
सत्य से,
किन्तु उस गहराई तक जाने के लिए,
मुझे उतार देना हो,
व्यर्थ किताबी ज्ञान का बोझ,
और बन जाना होगा,
एक जिज्ञासू ,
निश्छल, निष्पाप,
सत्य जानने को उत्सुक ,
बिलकुल उसी प्रारंभिक अवस्था में,
जहाँ मैं थी,
एक अबोध बच्चे की तरह।
आपकी किसी नयी -पुरानी पोस्ट की हल चल बृहस्पतिवार 21 -06-2012 को यहाँ भी है
जवाब देंहटाएं.... आज की नयी पुरानी हलचल में .... कुछ जाने पहचाने तो कुछ नए चेहरे .
nayi purani hulchal mein meri kavita ko shamil karne ke liye abhar
हटाएंबेहतरीन अभिव्यक्ति
जवाब देंहटाएंसादर
dhanyavad yashwant ji
हटाएंआत्ममीमांसा इसीलिए बहुत मुह्स्किल होती है, क्योंकि सही तरीका नहीं अपनाते हम. बहुत सुन्दर बात कही है.
जवाब देंहटाएंshikhaji dhanyavad
हटाएंवाह ...बहुत ही बढिया प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंdhanyavad
हटाएंsach kaha apne man ki kitab ko saaf karna pahla aur jaruri kaam hai.
जवाब देंहटाएंsunder prastuti.
apka dhanyavad
हटाएंbahut hi gehri avum sunder prastuti
जवाब देंहटाएंshubhkamnayen
pratikriya ke liye abhar
हटाएंanju ji protsahan ke liye dhanyvad, apse bat karke achcha laga, bahut kuch janne ko mila, asha hai age bhi ap isi tarah mera margdarshan karengi
जवाब देंहटाएंपोथी पढ़ि-पढ़ि जग मुआ पंडित भया न कोय !
जवाब देंहटाएंढाई अक्षर प्रेम का पढ़े सो पंडित होई,,,, स्वागत मेरे ब्लॉग पर
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