बस कुछ और दिन,
चलना होगा तपती भूमि पर,
झुलसेंगे पाँव धूप में,
पर शीघ्र ही आएगी बारिश,
जो देगी प्यासी धरती को नवजीवन,
घाव भर जायेंगे,
फिर मिटटी में पांव गीले हो जायेंगे,
ये भी हो सकता है,
ऐसे में कहीं
कोई मुरझायी हुई कली ,
फिर से खिल उठे।
चलना होगा तपती भूमि पर,
झुलसेंगे पाँव धूप में,
पर शीघ्र ही आएगी बारिश,
जो देगी प्यासी धरती को नवजीवन,
घाव भर जायेंगे,
फिर मिटटी में पांव गीले हो जायेंगे,
ये भी हो सकता है,
ऐसे में कहीं
कोई मुरझायी हुई कली ,
फिर से खिल उठे।
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