समय गुज़रता है जैसे,
मुट्ठी से फिसलती हुई रेत ,
सपने टूट जाते हैं जैसे,
मिटटी का घरोंन्दा ,
यादें रह जाती हैं जैसे
रेत में बने हुए क़दमों के निशान ,
खुशिया छरिक हैं
जैसे बनती बिगरती लहरें ,
जिन्दगी लगती है जैसे,
ढलता हुआ सूरज,
सब कुछ जैसे डूबता सा ,टूटता सा .
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें