भीड़ है पर कहाँ ,
मुझे तो दूर तक
कोई साया भी नज़र नहीं आता ,
आधे सोये हुए बेजान पुतले हैं चारो तरफ ,
जिन्दगी का कोई नामोनिशान नहीं आता ,
एक शोर सा है कहीं दूर से आता हुआ,
लेकिन उससे ज्यादा गहरी
ख़ामोशी फ़ैली है फिजाओं में,
खून में मिली हुई है नफरत,
जो दोड़ती हैं रगों में,
प्यार का कहीं नमो-निशान नज़र नहीं आता ,
धड़कने जिन्दगी का नहीं खौफ़ का आईना हैं,
कहीं भी चैन और आराम नज़र नहीं आता ।
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