मंगलवार, 19 जून 2012

आत्मदर्शन

बस दो चार किताबें,
पढ  कर ,
थोडा सा ज्ञान इकठ्ठा कर के,
 मैं बन जाना चाहती हूँ ,
ज्ञानी, विचार, दार्शनिक ,
बिना साधना किये ही,
पा लेना चाहती हूँ,
लक्ष्य को,
बिना अपने अंतर्मन में झांके ही,
पा लेना चाहती हूँ आत्मज्ञान ,
भूल जाती हूँ ,
 स्वयं को जानने के लिए,
मुझे झाकना पड़ेगा ,
अपने ही अन्दर,
बहुत गहराइयों में,
जहाँ से निकलेंगी ,
ज्ञान की तरंगे,
जो कराएंगी,
मेरा साक्षातकार ,
सत्य से,
किन्तु उस गहराई तक जाने के लिए,
मुझे उतार देना हो,
व्यर्थ किताबी ज्ञान का बोझ,
और बन जाना होगा,
एक जिज्ञासू ,
निश्छल, निष्पाप,
सत्य जानने को उत्सुक ,
बिलकुल उसी प्रारंभिक अवस्था में,
जहाँ मैं  थी,
एक अबोध बच्चे की तरह।
 

15 टिप्‍पणियां:

  1. आत्ममीमांसा इसीलिए बहुत मुह्स्किल होती है, क्योंकि सही तरीका नहीं अपनाते हम. बहुत सुन्दर बात कही है.

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  2. वाह ...बहुत ही बढिया प्रस्‍तुति

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  3. anju ji protsahan ke liye dhanyvad, apse bat karke achcha laga, bahut kuch janne ko mila, asha hai age bhi ap isi tarah mera margdarshan karengi

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  4. पोथी पढ़ि-पढ़ि जग मुआ पंडित भया न कोय !

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    1. ढाई अक्षर प्रेम का पढ़े सो पंडित होई,,,, स्वागत मेरे ब्लॉग पर

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